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Wednesday, July 17, 2019

मालिक को अपना सारथी बन जाने दो, सभी मुश्किलें गयाब!!

मुश्किल समय हमारी व जगत की वह दशा है जो परिस्थिति बस प्राकृतिक है!हमारा लक्ष्य उससे परे है!!
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एक दशा वह भी है जो समय का अतिक्रमण कर देती है।हमने अनेक बार महसूस किया है-कभी कभी एक घण्टा ध्यान का कब बीत गया, पता ही Fनहीं चलता। कभी कभी पांच छह मिनट भी गुजरना मुश्किल हो जाता है.हमारी लीनता, गहराई, रुचि,समर्पण ,लक्ष्य प्रति तड़फ आदि मुश्किल समय के अहसास को कम कर देती है या समाप्त कर देती है। समय मुश्किल हो या सरल का तब अतिक्रमण हो जाता है ,जब हम मालिक की याद में होते है और प्रतिकूल परिस्थितियों पर विचार या महसूस करने का समय ही नहीं देते. एक उदाहरण हम देते हैं- एक समय ऐसा था जब कहीं बाहर जाना होता था और बस के इंतजार में मानसिक उधेड़बुन में रहता था तब समय व्यतीत करना मुश्किल होता था. परेशान होता था कि बस आएगी कि नहीं?समय से नहीं आयी तो?आदिआदि!अब पांच वर्षों से साधना में सघनता व निरन्तर बढ़ती गहराई व बदलते नजरिया मद्देनजर अब परिस्थितयां विपरीत हो गयी. अब जब बाहर जाने के चौराहे पर आकर खड़े होते हैं तो मालिक की याद में होते हैं और किसी तरह की चिंता नहीं।अब यही विचार रहता है,जो होगा देखा जाएगा. समय व दूरी का अहसास शून्य हो जाता है.बस भी आती है,सब प्रक्रियाओं से भी गुजरता हूँ और आश्रम या केंद्र पर जा कर पता चलता है,अरे !हम तो आगये !तब हम उस वर्तमान में होते है जिसका न वर्तमान होता है न भविष्य. लगता तो यही है समय व दूरी का अतिक्रमण हो गया हो. इसी तरह जीवन में अन्य अवसर भी आते हैं जब हम उन्हें जीते चले जाते है,आगे बढ़ते जाते हैं. ये तभी है जब हम मालिक की याद में खोए होते हैं.वर्तमान को आगे पीछे न सोंच जीते चले जाते है।किसी ने कहा है-बस, द्रष्टा बन जीवन जीते जाओ।सोंचो मत।वर्तमान में जो करना है करते जाओ!

   मुश्किल समय प्रकृति में है,स्थूल में है।'मुश्किल समय'वह है ,जब हम अपने व जगत मूल की ओर की यात्रा ,गतिशीलता, स्पंदन, कम्पन, तरंग, प्रकाश आदि का कभी अहसास नहीं पाए और उसकी कल्पना कर अपने वजूद से परिचित नहीं और अपने स्थूल शरीर, अन्य स्थूल शरीरों, भौतिक इच्छाओं, पूर्वाग्रहों, ऐंद्रिक आबश्यक्ताओं,कृत्रिम व्यबस्थाओं, बनाबटों, जाति, मजहब, भेद, कुरीतियों आदि में रहकर अपने स्थूल की मृत्यु से पूर्व ही मृत्यु के ज्ञान, तैयारी, जीवन की असलियत आदि प्रति अपनी समझ खो देते हैं।जब 'मुश्किल समय'है तो इसके विपरीत 'सरल समय' भी अवश्य है।ये दोनों है,जो समय है!अबश्य समय के विपरीत भी स्थिति है!हम तो यही कहेंगे, जहां प्रकृति है वहीं समय है।जब हम अपनी प्रकृति अर्थात स्थूलता से निकल सूक्ष्म दर सूक्ष्म होते जायेगे समय के आभास के साथ साथ दूरी का आभास भी कम होता जाएगा। जब हम व्यस्त होते है,समय चुटकियों में गुजरता महसूस होता है।व्यस्तता में जब हम यात्रा करते है तो दूरी का आभास नहीं होता है।

  हमारे अनुभव व निष्कर्ष बताते हैं -मुश्किल समय या सरल समय छोड़ो समय का अहसास ही तब नहीं होता जब हम अपने लक्ष्य की धुन में हों अर्थात समय सिमट जाता है।एक अवस्था वह भी है जो समय से परे है।दूरी से परे है।श्रीकृष्ण सोलह सौ अपनी रानियों के साथ कैसे एक ही समय में उपस्थित होते हैं?इसका मतलब ये है कि एक अवस्था वह भी है जहां समय व दूरी का अतिक्रमण है।मुश्किल समय या सरल समय प्रकृति व संसार में है।हमारे व संसार के स्थूल जगत में है और एक स्तर तक सूक्ष्म जगत में है लेकिन जितने हम जगत मूल के करीब होते जाएंगे मालिक से प्रेम को साथ लिए मुश्किल समय से परे होते जाएंगे। मालिक जब हमारा सारथी हो जाएगा तो कैसा मुश्किल समय?