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Saturday, April 30, 2011

भारत का भला गुटनिरपक्ष नीति ही से.

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मै इससे पूर्व अनेक बार कह चुका हूं कि भविष्य मे चीन व मुस्लिम देश एक मंच पर होंगे .अमेरीका अपनी राईफले भारत के कन्धे पर रख चीन पर निशाना साधने की है.भारत मे ऐसी स्थिति मुस्लिम व्यवहार गृह स्थिति पैदा कर सकते है.हालांकि भारतीय मुसलमान दुनिया के शेष मुसलमानों से हट कर है.गैरमुसलमानों के संग रहते रहते वह गैरमुसलमानों के दर्द को भी समझता है,यदि कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों को छोड़ दें.अगला विश्वयुद्ध एशिया से ही लड़ा जाना है.अमेरीका की फौजें भारत मे अपना ठिकाना बना सकती हैं .युद्ध का क्या परिणाम होता है?इसे कुण्ठित व निष्ठुर व्यक्ति क्या समझे ? एशिया को युद्ध से बचाना चाहते हो,तो एशिया के तमाम देशों की पब्लिक को जागरुक होना होगा.देश देश बीच समस्यायों को आपस मे ही सुलझाना होगा .अमेरीका की नियति ठीक नहीं ,वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई भी ईमानदारी से नहीं लड़ रहा है.ओशो ने उसे उसकी ही भूमि पर लताड़ा था,ओशो को उसने जहर जरुर दिया लेकिन सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता .मै भी कहता हूँ दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह है अमेरीका.उसका जीवन कब तक है?तृतीय विश्व युद्ध के आखिर में तो भारत ,रुस व चीन का त्रिगुट अवश्य नजर आना चाहिए.भारत को गुटनिरपेक्षता तटस्थता गरीब देशो का पक्ष व शान्ति की बात तब तक करती ही रहना चाहिए ,जब तक युद्ध मजबूरी न हो जाए.उसे आम आदमी के लिए विश्व के तमाम देशों की शरहदे खोल देने की वकालत करनी चाहिए.सार्क देशों की एक सेना एक मुद्रा की बात आगे बढ़ाना चाहिए.इस हेतु सरकारोँ को प्रेरित करने के लिए कम से कम मुस्लिम जनता को सड़क पर आना ही चाहिए.पाकिस्तान, अफगानिस्तान ,कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार ,प.बंगाल, बांग्ला देश काफी तादाद में मुस्लिम आबादी है.जो सड़क पर आ जाये तो यह देश संयुक्त हो ही सकते हैं.भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम की तरह मैं इस मुहिम मे भी समर्थन करने के लिए तैयार हूँ .क्योंकि मेरा एक सपना है -अखण्ड भारत . नेता मुलायम सिंह क्या इस मुहिम को आगे बढ़ाना चाहेंगे ?लोहिया का भी तो सपना था-अखण्ड भारत का.नक्सलियों को भी अपने आन्दोलन को हिंसक बनाते हुए इस काम पर विचार करना चाहिए .

अखण्ड ज्योति : विशिष्ट सामयिक चिन्तन



जब मैं कक्षा पांच का छात्र था,तब से मै निरन्तर अखण्ड पत्रिका पढ़ रहा हूँ.इस पत्रिका का प्रत्येक लेख सराहनीय रहा है.विशिष्ट सामयिक चिंतन मेरे लिए विशेष महत्वपूर्ण रहा है.इस बार के अप्रैल अंक के विशिष्ट सामयिक चिंतन परिशिष्ट का विषय था -'युग परिवर्तन हेतु सात विभूतियों का आह्वान '.



सत्य ही है कि यों सभी मनुष्य ईश्वर के पुत्र हैं,पर जिनमें कुछ विशेष विभूतियाँ दिखाई देती हैं,उन्हें ईश्वर की विशिष्ट संपदा से संपन्न समझा जाना चाहिए.गीता के विभूति योग में भगवान कृष्ण ने विशिष्ट विभुतियों मे अपना अंश होने की बात कही है.भावनात्मक नवनिर्माण जैसे युगांतरकारी अभियान में ऐसी विशिष्ट विभूतियों का विशेष योगदान होता है.विभूतियों को सात भागों में विभक्त किया जा सकता है-भावनाशील वर्ग,शिक्षा एवं साहित्य,कलामंच,विज्ञान,शासन सत्ता ,संपदा के धनी ,प्रतिभाएं . इन सातों के उपयोग सुनियोजन से ही किसी समय विशेष में व्यक्ति और समाज का कल्याण होता है.
......सातों विभूतियों के क्षेत्र मे संसार की करोड़ों प्रतिभाएं आती हैँ.उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करने का कार्य साधारण नहीं , असाधारण है.



हाँ!इसे पूर्व ,मार्च 2011के अंक का विशिष्ट सामयिक चिंतन व्यवस्थाओं मे परिवर्तन हेतु बड़ा आशावान था .जिसकी आखिरी पंक्तियां थीं-"धरती पर सतयुग आएगा एवं इसका प्रमाण मिल रहा है उषाकाल प्रभातपर्व की इस वेला मे उस अरुणोदय से,जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है.किसी को भी इसमे संशय नहीँ जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है.किसी को भी इसमे संशय नहीं होना चाहिए.कहीं आप भी असमंजस मे तो नहीं?यह समय बदलने का है.बदल जाइए."



वैचारिक क्रान्ति मे अण्खड ज्योति का योगदान कम नहीं है.वर्तमान युग का जब भी इतिहास लिखा जाएगा तो इसका जिक्र स्वर्णिम वर्णों मे होगा.



दो प्रतिशत से भी कम महापुरुष हुए है ,जिन्होने समाज के लिए निर्देशक का कार्य किया है.सन 2011ई0 प्रारम्भ होने के साथ विश्व मे बदलाव के लिए लोग छटपटाने लगे हैं.इस बीच सत्य सांई बाबा का जाना बड़ी छति का प्रतीक है सम्भवत : .उनको भी इस घड़ी मे रुकना चाहिए था. खबरइंडिया बेवसाइट ने कहा है कि बाबा का निधन हुआ है कि वह ब्रह्म लीन हुए हैं?खैर,दुनिया मे बदलाव की लहर जारी है.भारत में भी इसका असर देखने को मिल रहा है . मुस्लिम संतो को भी आगे आना चाहिए .मानव उत्थान हित अब सबको बदलना ही चाहिए.



: भविष्य कथांश:रेडियशन से बचाव !



गरीब तबके के लोग एक परिवार से संघर्ष करके एक गाय को अपने कबीले मे ले आये थे.


बालक फदेस्हरर बोला -" एक गाय के लिए मानव मानव के बीच संघर्ष ? "

"इतनी ही अक्ल होती तो बात ही फिर दूसरी होती.हर सृष्टि के बाद ऋग्वैदिक काल मे आर्य विद्वान एक 'आर्ट आफ लिविंग' देते हैं लेकिन मानव आगे चल कर साम्प्रदायिकता , सत्तावाद व पूंजीवाद की कठपुतली बन कर रह जाता है . 21 मई 2011ई0 के दो माह पूर्व लगभग! दिन गुरुवार 24 मार्च रंगपंचमी पर्व,दोहा नदी के तट पर स्थित एक शहर अंगदीय(शाहजहाँपुर) के समीप स्थित एक कस्बा ईश गढ़ (खुदागंज) मे यह पर्व बड़ी धूम से मनाया जा रहा था.जहां स्थित एक देवि स्थल पर अपने धरती के कुछ व्यक्ति अपने सूक्ष्म शरीर मे उपस्थित थे. इसी धरती के निबासी चर्चा कर रहे थे. "



* * * *

खुदागंज का ही एक देवि स्थल के प्रांगण मे एक पीपल वृक्ष के नीचे-



"आदिकारण श्रीनारायण अर्थात ईश्वरीय तत्व से ही है सब कुछ."


"सब कुछ कैसे ? वर्तमान के प्रलय काल के लिए तो मनुष्य दोषी है ! मनुष्य से क्या प्रकृति प्रभावित नही होती ? "


" प्रकृति ही प्रकृति को प्रभावित करती है .मनुष्य जो करता है वह अपनी ऐच्छिक व शारीरिक आवश्यकताओं वश चेष्टाएं करता है.कर्म तो आत्मा से होते है. "



"रेडियोएक्टिव प्रदूषण से बचने के उपाय तो होंगे ? जापान मे देखो क्या चल रहा है,रेडियशन से क्या उपाय हो सकते हैं गरीब व्यक्ति के सामने ? "



"आध्यात्मिक ज्ञान के साथ साथ योग,कलर थेरेपी सुगन्ध थेरेपी प्रकाश थेरेपी आदि,गाय का गोबर मूत्र दूध घी आदि...और आत्मबल."



"गाय के गोबर से लिपी जमीन दीवारों पर रेडियेशन का प्रभाव नहीं पड़ता."


"हमारे पूर्वजों ने कहा था कि गाय के सींगों पर पृथ्वी टिकी है,तो इसका मतलब क्या है? यहां गाय के सींगों से मतलब गाय के सम्मान से है."



"भविष्य में बचे खुचे मनुष्यों के द्वारा गाय का सम्मान एक मजबूरी हो जाता है.गोमूत्र तो मनुष्य के प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का अच्छा उपाय है ही,रेडियेशन आदि के कारण कैंसर होने की संभावना समाप्त करता है."



"इस पर अब तो अनेक वैज्ञानिक शोध भी सामने आये हैं."



"यदि बाल्यावस्था से ही मनुष्य गौमूत्र व उसके दूध से बने उत्पाद के साथ साथ आयुर्वेद आदि को दिनचर्या का हिस्सा बना लिया जाए तो मनुष्य अपनी उम्र व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से उबरा रह सकता है. "




"गौरबशाली भारत का इतिहास घर घर मे गाय पालन व सम्मान का इतिहास था."



" रुसी वैज्ञानिक सिरोविच ने कहा है कि आण्विक विकरण से रक्षा पर अपने प्रयोग के दौरान पाया कि गाय के घी की अग्नि में आहुति देने पर उसकी जो सुवास निकलती है वह जहाँ जहाँ तक फैलती है उससे सारा वातावरण आण्विक विकरण से मुक्त हो जाता है. "



" शायद हजरत मोहम्मद साहब ने भी कहा है कि गाय का दूध गिजा है,घी दबा है और गोस्त बीमारी है . "



" हमने सुना है कि दिवाकर अपना घर बच्चे छोंड़ मांड् या चला गया है. "



" सही ही सुना है."



"जब बाबा ही बनना था तो शादी क्यों की ?"



"क्या गृहस्थ सन्यासी नहीं हो सकता ? और फिर पहले अपने परिवार को मना कर वह सन्यासी बना.साल मे दो तीन बार घर आता भी रहता है."



"हाँ,बात गोधन की हो रही थी.सर जी के साहित्य से पता चलता है कि जीवों वनस्पतियों की प्रजातियां खत्म हो रही हैं ऐसे में दो तीन हजार वर्ष बाद गोधन को पाने की लालसा मे संघर्ष तेज हो सकते है ."



अब इकसठवीं सदी-



युवती फदेस्हरर व बालक हफ्कदम एक तिब्बती अधेड़ स्त्री के साथ पैदल ही समुद्र तट के विपरीत दिशा में आगे बढ़ते जा रहे थे . मत्स्य मानव की विशालकाय प्रतिमा पीछे ही छूट गयी थी.



दायीं ओर कुछ लोग गाय को लेकर झगड़ रहे थे.जब उन्होने इन तीनो को देखा तो कुछ पल के लिए स्थिर हो गये.
जब तीनों उधर ही बढ़ गये तो वे सब शान्त भाव से इधर ही बढ़ चले.


* * * *




युवती फदेस्हरर व बालक हफ्क्दम तिब्बती अधेड़ स्त्री के साथ मिट्टी से बने एक चौकोर चबूतरे पर बैठे हुए थे . कबीला के लोग सामने जमीन पर बैठे थे .गाय को घेरे कुछ दबंग युवक खड़े थे.
इस गरीब कबीला के कुछ लोग गाय को चुरा कर ले तो आये थे लेकिन फिर यहां गाय के दूध ,मूत्र व गोबर के इस्तेमाल को लेकर आपस मेँ झगड़ पड़े थे.



फदेस्हरर गाय को घेरे दबंग युवकों से बोली-



"आप सब को अब भी सीख नहीं लेनी अपने पुरखों की करतूतों से.मानव शक्ल हो सब ,सनातन महापुरुषों के सम्मान में कुछ तो करो.आपके परिजन सामर्थ्यवान है,बस इतना ही काफी है ? इन गरीबों को आप सब बन्धुआ तो रख सकते हो लेकिन इनके बच्चों के लिए गोरस की व्यवस्था क्यों नहीं? वीर भोग्या बसुन्धरा!यदि यह बिचारे गरीब अपने बच्चों के जीवन के लिए वीरता दिखाते है तो इसके लिए सिर्फ यही दोषी न."

Monday, April 25, 2011

26अप्रैल1920ई0:श्री निवास रामानुजन ( Srinivas Ramanujan ) पुण्य दिवस!



                                                वास्तव मेँ दो प्रतिशत लोगों के कारण ही मनुष्यता की लाज बची है.प्रतिभावानों के जीवन ढंग को उनके जीते जी स्वीकार नहीं किया गया.समाज में तो लकीर के फकीर हुए हैं.भक्ति के दो सहारे होते हैं-ज्ञान व वैराग्य.भक्ति को मैं दूसरा नाम देता हूँ -दीवानगी .



                                                 रामानुजन जब विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त न कर सकें.गणित में तो वे पूरे के पूरे नम्बर ले आते थे लेकिन अन्य विषय में वे फेल हो जाते थे.गणित के प्रति उनका लगाव दीवानगी स्तर पर था कि गणित के प्रति तो उनमें ज्ञान व अन्य के प्रति वैराग्य था.ऐसे में उन्हें अपने घर पर बैठना पड़ा.उनके माता पिता ही उन्हें पागल कहने लगे,उपेक्षित करने लगे व कमेंटस तथा नुक्ताचीनी करने लगे.रामानुजन हमेशा संख्याओं से खिलवाड़ करते रहते थे.13 साल की अवस्था में इन्होने लोनी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध ट्रिगनोमेट्री को हल कर डाला था.15 साल की अवस्था में George Shoobridge Carr द्वारा रचित एक पुस्तक Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics प्राप्त हुई.इस पुस्तक में छ हजार के लगभग प्रमेयों का संकलन था.जिसके आधार पर इन्होने कुछ नयी प्रमेय विकसित कीँ.
पिता के द्वारा जबरदस्ती विवाह के बाद जीविका यापन व अपने गणित सम्बन्धी कार्य को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी मुश्किल से पच्चीस रुपये माहवार की नौकरी मिल पायी.रुपयों के अभाव में इनकी स्थिति यहां तक पर पहुंच गयी थी कि वे सड़कों पर पड़े कागज उठाने लगे . कभी कभी तो वे अपना काम करने के लिए नीली स्याही से लिखे कागजों पर लाल कलम से लिखते थे.



                                                            इन्होने अपनी 120 प्रमेय को अच्छे कागजों पर लिखकर एक पत्र के साथ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात गणतिज्ञ जी एच हाडी (G.H.HARDY)को भेजी.हार्डी ने तुरन्त ही रामानुजन के कैम्ब्रिज आने के लिए प्रबन्ध कर डाले.इस प्रकार 17मार्च 1914 को रामानुजन ब्रिटेन के लिए जलयान से रवाना होगये थे.फिर सिलसिला शुरु हुआ उनके सम्मान व पुरस्कार का.



                                                             जीवन पर्यन्त उनमें गणित के प्रति दीवानगी बनी रही.आज इस अवसर पर मैं युवक युवतियों से कहना चाहूंगा कि अपनी प्रतिभा के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए.हालातों व सुलभ रास्ता को देख कर या अपने को मजबूर मान कर अपनी क्षमताओं से समझौता ठीक नहीं.आज भारतीय अनुसन्धानशालाओं में अच्छे शोधकर्मियों की कमी है ,इसका एक मात्र कारण युवाओं का नजरिया है.हमारा नजरिया ही हमे स्वतन्त्र या परतन्त्र बनाता है.

भ्रष्टाचार रुपी दानव खत्म कैसे हो?



                                           देश मे काला धन बापस आने से पूर्व भ्रष्ट नेताओं व अफसरों को सजा दिलवाना आवश्यक है.भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम मे अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का योगदान सराहनीय रहेगा. लेकिन -पूरा का पूरा तन्त्र भ्रष्ट हो चुका है ऐसे मे नगेटिव थिंकिग ज्यादा व्याप्त है.महाभारत युद्ध मे कृष्ण व पाण्डव के साथ कितने लोग थे ?दुनिया को सिर्फ दो प्रतिशत लोगो ने बदला है.शेष समाज नगेटिव ही रहा है.


                                           जब भ्रष्टाचार रुपी दानव के खिलाफ मुहिम चलानी ही है तो अन्ना व बाबा रामदेव एक मंच पर क्यों नहीं?यह सबाल पब्लिक मे उठ रहे है. जिसका जबाब मे अपने स्तर पर दे रहा हूँ.अन्ना के अनशन के दौरान जो पाजटिव थिंकिंग पैदा होना प्रारम्भ हुई थी वह अब नगेटिव रुप धारण करती जा रही है.अन्ना टीम को इस पर कुछ करना चाहिए.बात है बाबा राम देव की अन्ना से हट कर अपना अभियान चलाने की तो मै इस पर कहना चाहूंगा कि अन्य संस्थाओं को भी अपने स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाना चाहिए लेकिन एक दूसरे के समर्थन मे एक दूसरे के मंच पर आते रहें.एक मंच तले देश की पब्लिक को नहीं लाया जा सकता,इसका कारण पब्लिक का मतभेद मे जीना है.
यदि एक मंच पर आ कर ही यह अभियान चलाया जाए तो फिर बात ही क्या.





www.ashokbindu.blogspot.com

matsy avatar!






भुम्सनदा के बर्फीले भू भाग पर एक ब्रह्मा शक्ल व्यक्ति-'यल्ह' .



"यल्ह आर्य! तुमको इस धरती की ओर से मिशन का चीफ बनाया गया है. कल्कि अवतार को पृथु
मही के आधार पर हालांकि सैकड़ो वर्ष हैं लेकिन इससे पूर्व देवरावण के अन्त के
लिए.......  . "




"कल्कि अवतार की तैयारी का सम्बन्ध देव रावण के अन्त.......?! विधाता ,जिसके हम सब
मे तथा सभी धरतियों के प्राणियों मे समाहित है, उस चेतना पर देव रावण क्या दखलंदाजी
भी कर सकता है? हमे आश्चर्य है! "




" यल्ह आर्य! चेतना का स्थूल शरीर धारण कर स्थूल या प्रकृति परिस्थितियों मे उलझना
स्वाभाविक है लेकिन कल्कि अवतार के लिए स्थूल या प्रकृति से वैराग्य प्राप्त
चेतनांशों की बहुलता चाहिए."



पृथु मही पर वह(फदेस्हरर) हफ्कदम को क्यों ले गयी है?विधाता के त्रीअंश अवतारों मे
से एक शिव के लोक से चेतनांशों मे इस वक्त हफ्कदम मे मोक्ष प्राप्त यल्ह चेतनांश
है.हफ्कदम को विभिन्न स्थूल व प्राकृतिक स्थितियों का अध्ययन आवश्यक है.युवती
फदेस्हरर बालक हफ्कदम के साथ पृथु मही अर्थात इस पृथ्वी पर थी.दोनों मत्स्य मानव की
विशालकाय प्रतिमा के समीप थे.



"क्या साइरियस अर्थात लुन्धक से ही आया था मत्स्य मानव ? "



" हफ्कदम! मत्स्य मानवों का मूलनिवास लुन्धक ही था.वहीं से......?! "



"था .....?! क्या अब है नहीं? "



" इस पर फिर कभी बताऊंगी ? हफ्कदम! अनेक चेतांश के समूह से विधातांश पदेन ब्रह्मा
महेश व विष्णु तथा पदेन अग्निदेव के सहयोग से लुन्धक के एक निबासी बालक को दिव्य
शक्तियां दे मत्स्य अवतार के रुप मे इस धरती पर भेजने के लिए तैयार किया गया था."



मत्स्य मानव की विशालकाय प्रतिमा समुद्र किनारे एक चट्टान पर बनी हुई थी.लहरें
जिसको स्पर्श कर वापस लौट जाती थीं.


यह सन 6020ई0 का ही समय था.



अमेरिका झुठलाता रहा था इस बात को कि सन 1947ई0 में न्यूमैक्सिको में
दुर्घटनाग्रस्त होकर दो उड़नतश्तरी गिरी थीं लेकिन सन2011ई0के अप्रैल माह मे उसे इस
बात को स्वीकार करना पड़ गया था.एक ब्लाग < www.akvashokbindu.blogspot > मे इस
सच्चाई को पहले ही उजागर कर दिया था.इस पर ब्लागकर्ता ने विकिलिक्स वेबसाइट से भी
सम्भवत: सम्पर्क साधा था.


Tuesday, April 5, 2011

15अप्रेल1452:लियोनार्दो द विन्शी का जन्म!



                                                              लियोनार्दो द विन्शी :दस व्यक्तियों की प्रतिभा वाला एक व्यक्ति !




                                                              व्यक्ति के जीवन मे विषम परिस्थितियां सृजनात्मक सोंच मे महापुरुष बनाने के लक्षण रखती हैं. इनकी माँ केतरिना ने इन्हें अपने पति जो कि एक वकील थे,के पास छोंड़ कर एक भवन निर्माता से शादी कर ली थी.



                                     चौदह साल की अवस्था मे विन्शी ने मूर्तियां बनाने के क्षेत्र मे विलक्षण प्रतिभा का प्रदर्शन किया.पिता ने खुश होकर विन्शी को मूर्तिकार एन्ड्रीडेल बेराकिमों के पास प्रशिक्षण के लिए भेज दिया.जहां उन्होने 16 वर्ष बिता दिये.सन 1482ई0में इन्हें मिलान के ड्यूक ने अपने यहाँ सेना में इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.



                                      'सार्वभौमिक मानव' ,वास्तव मे विन्शी सार्वभौमिक मानव थे.वे महान बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे.वे एक साथ पेंटर,आविष्कारक,संगीतज्ञ,मूर्तिकार,सेना इंजीनियर,वैज्ञानिक,निरीक्षक,शरीर रचना विज्ञानी,भवन निर्माता,नगर नियोजक और डिजाइनर थे.



14अप्रेल:जाति व्यवस्था पर चोट!



                                  डा0भीम राव अम्बेडकर ने कहा था कि जन्म मेरे वश मे न था लेकिन मृत्यु वश मे है.बौद्ध मत मे आते बोले कि भारतीय संस्कृति का ज्यादा नुकसान नहीँ करना चाहता.अब भी सवर्ण वर्ग न जाने क्योँ उन्हें आत्मसात न कर पाता .


जब इंसान ही इंसान के लिए बोझ बनता जा रहा है तो फिर काहे को जाति ,काहे को समाज?पुरातन नेटवर्किंग है-,,.....?!अब वैश्वीकरण व अर्थव्यवस्थता में नई तकनीक ने समीकरण बदले हैं.ब्राह्मण जाति में अपने को मानने वाले चर्म व्यवसाय व अन्य व्यवसायों में नजर आ रहे हैं,समाज में शूद्र माने जाने वाले अब शिक्षित हो पठन पाठन मेँ भी नजर आने लगे हैं .भक्ति काल ,सामाजिक सुधारान्दोलनों के बाद अब धर्म,उपदेशकार्य व सन्तों का सम्मान तो रह गया है लेकिन ब्राह्मणों का अन्य जातियों तरह दैनिक आचरणों व व्यवसायों के कारण ब्राह्मण जाति के सभी व्यक्तियों के सम्मान में कमी आयी है.इंसान के नये वर्ग,समूह,संस्थायें बननी प्रारम्भ हो गयी हैं.पुरातन समूहों वर्गों के प्रति आकर्षण कम हुआ है,अपनी जाति के बीच ही लड़के लड़कियों मध्य आकर्षण,प्रेम व विवाह का भाव कमजोर होता जा रहा है.साम्प्रदायिकता की भावना भी कमजोर पड़ रही है.नैतिक,चरित्र,वैराग्य,ज्ञान,मोक्ष,सेवा,आदि का पक्ष न ले अपने निजस्वार्थ चेहरा देख कर आचरण बनते बिगड़ते हैं.वह कमजोर डण्ठल के पत्तों की तरह हो गया है,जब आँधी आयी तो गिर गया.अब जाति,समाज,पन्थ,आदि का इस्तेमाल भी अपने निजस्वार्थों के लिए बनता बिगड़ता है.भक्ति भी का उद्देश्य मुक्ति,वैराग्य,ज्ञान के लिए नहीं भौतिक लालसाओं के लिए होता है.रोजमर्रे की जिन्दगी में अपनी जाति मजहब के लोग ही विश्वासघात का छुरा भोंपने के लिए तैयार बैठे रहते हैं.यहां तक कि एक परिवार के अन्दर ही चार भाईयों के बीच माँ बाप की उपस्थिति मेँ ही अन्याय शोषण देखा गया देखा जा सकता है,जाति मजहब बौने साबित होते हैं.हाँ, बिखण्डन में सहयोग के लिए अनेक सामने आ जाते हैँ.यहां तक कि चन्द भौतिक लालसाओँ में छोंड़कर पति पत्नी तक एक दूसरे के विरोध में खड़े देखे गये हैं.दोष कलियुग को दिया जाता है.कहते हैं,अभी तो कलियुग घुटनो चल रहा है.


जातिगत आरक्षण का विरोध करने वाले जाति व्यवस्था का विरोध क्यों नहीं कर पाते ? और वैदिक व्यवस्थाओं व वर्ण व्यवस्था को क्यों नहीं स्वीकार कर पाते ? इनसे तो अच्छे गैरसवर्ण हैं जो वैदिक व्यवस्था स्वीकार करने के रास्ते पर अपनी संख्या बढ़ाते जा रहे हैं.






......अब फर्ज निभाने का नहीं,सुना का?



                लगता है विभिन्न पदासीन व्यक्ति,कर्मचारी,नेता,आदि अपने अब निभाने का नहीं,सुना का?




                     यदि हमारा नजरिया ठीक हो तो फिल्मों से भी सीख ली जा सकती है. फिल्मोँ में दिखाया जाता है कि कैसे किस तरह ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर अपना फर्ज निभाते हुए अपने विभाग में ही अलग थलग पड़ जाता है?नेताशाही व अण्डरवर्ल्ड नाराज होता ही जाता है ,पब्लिक भी तमाशा देखती रह जाती है.उस पुलिस इंस्पेक्टर के साथ कौन खड़ा होता है?वह ,जो जुर्म की दुनिया का शिकार हुआ होता है .धर्म अनुष्ठानों में 'धर्म की विजय हो ' , 'अधर्म का नाश हो' ,आदि का जयघोष लगाने वाले,अपने को अपने ईमान पर पक्का बताने वाले वास्तव में कायर होते हैँ.बस,अपने निज स्वर्थों व अपने पक्ष के लिए अपनी कायरता ताख में रखते हैं या फिर वेवश कमजोर के सामने.धन्य,रोज मर्रे की जिन्दगी में उदार जीवन जीने वाले इनकी नजर में कायर होते है.अनेक विभागों में एक दो ईमानदार व्यक्तियों को अपने फर्ज निभाने वालों की मैने बगुला भगतों के बीच दशा दिशा देखी है,दुख होता है.

नकसलियों मेरी सुनो !



अन्ऩा हजारे व रामदेव बाबा के समर्थन मेँ युद्ध विराम करो -ऐ नकसलियों .

देश को फिर बलिदानों की आवश्यकता है.भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन के खिलाफ अब आवाज तेज होनी ही चाहिए.खाड़ी देशों में जिस तरह तानाशाही सरकारों के खिलाफ बगावत है,उसी तरह इस देश मेँ भी प्रजातान्त्रिक ढंग से आन्दोलन आवश्यक है.भारत के मुसलमान क्या खाड़ी के मुसलमानों से कम हैं? इस देश के लिए मुसलमानों का योगदान कम नहीं है.तुम्हारे सहयोग के बिना देश में परिवर्तन असम्भव है.



भारतीय मुसलमान दुनिया के मुसलमानों से काफी बेहतर हैं.वे गैरमुसलमानों की संवेदनाएं महसूस करते हैं.वे कबीरों को आश्रय देना जानते हैं.



भ्रष्टाचार व काले धन की लड़ाई में हम सब को मिल सभी भेद भाव भुला कर अन्ना हजारे व रामदेव बाबा का समर्थन करना चाहिए.



भारत ने विश्व कप जीता अच्छा है.हमें इस पर खुशी मनाने का हक है लेकिन......?!

लोग मोबाइल पर मैसेज भेज रहे है HAPPY INDIA. लेकिन....



बस,ऐसे ही HAPPY INDIA..?एक ओर भुखमरी ,गरीबी ,लाचारी,बेरोजगारी, अन्याय,शोषण,मनमानी,भ्रष्टाचार,हिंसा,आदि!काहे को HAPPY INDIA...?कम से कम अभी जन लोकपाल विधेयक व काला धन के मामले पर अन्ना हजारे व राम देव बाबा का अभी तो समर्थन कर सकते है?तटस्थ भाव से जरा सोंचिए कि वे जिस मिशन को लेकर चल रहे है उससे क्या हमारा या देश का भला नहीं होने वाला क्या?





ऐ नकसली भाईयों ! देश के हित अन्ना हजारे व रामदेव बाबा के साथा आओ.
नक्सलियों ,मेरी बात ध्यान से सुनो.
अपना हिंसक रुप बदल कर गांधी के रास्ते पर आ जाओ.भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन से ऊबे देशभक्त तुम्हारे समर्थन के लिए तैयार हैँ.बस,हिंसा छोड़ो.गणतन्त्र को गुणतन्त्र में बदलने के लिए मुसलमानों को भी विश्वास मेँ लेना आवश्यक है.



अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'



हिन्दू दंश: हिन्दुओं के साथ क्या दया रखते हो?



"व्यवहार हम किसके साथ रखें ?"


"अरे वो तो मुसलमान हैं, उससे व्यवहार रखते हो?"


" तुम चलो मुसलमानों से व्यवहार नहीं रखते तो कोई बात न लेकिन हिन्दुओं के साथ क्या तुम ठीक व्यवहार रखते हो?"



"क्या मतलब? अपनी बिरादरी से कोई बिगड़ी हुई थोड़ी है,न अपनी बिरादरी की संख्या कम है.क्यों कटुओं से व्यवहार रखें ? "




" हूँ! बात संकीर्णता की ही करोगे.तुम्हारा हिन्दुत्व क्या अपनी बिरादरी में ही व्यवहार कराना जानता है? और फिर क्या तुम अपनी बिरादरी के सभी व्यक्तियों के साथ नम्र व्यवहार रखते हो या न्यायवादी व्यवहार रखते हो?"


आर्य ,जैन ,बौद्ध, ईसा ,मुस्लिम ,हिन्दू,आदि शब्दों में कौन सा शब्द अपने संकीर्णता का प्रतीक है?हिन्दू न!हिन्दू शब्द क्षेत्र विशेष का प्रतीक है.अन्य शब्द अपने मेँ फिलासफी छिपाए हैं.हिन्दू शब्द से बेहतर शब्द है -भारतीय.

ईर्ष्या and more !



ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से !




अतृप्त मन की ही एक विशेषता है-ईर्ष्या की उपस्थिति.इस जगत में आने के बाद इंसान अनेक इच्छाओं से अपने मन को गुलाम बना लेता है.इच्छाएं पूरी न होने पर मन में अनेक विकार पैदा हो जाते हैं.जिसके परिणाम स्वरुप शरीर,परिवार व समाज भी प्रभावित होता है.हमारे सनातन विद्वानों ने जीवन का आधार धर्म माना था और प्रारम्भिक 25 वर्ष तक के जीवन की दशा ब्रह्मचर्य मानी थी .जिसका उद्देश्य माया ,मोह,लोभ,मद,क्रोध,आदि के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रशिक्षण न था लेकिन आज के भौतिक भोगवादीयुग मेँ दस उम्र पार करते करते ही इंसान अपनी सारी शक्तियों की दशा दिशा भौतिक भोगवादी बना लेता है.ऐसे में भी मन जब अतृप्त रह जाता है तब सामने वाले की सफलता को देख कर मन यदि ईर्ष्या में भर जाता है तो मन में खिन्नता,चिड़चिड़ापन,,निराशा,आदि आने लगती है.इससे फिर हमारा मस्तिष्क,हृदय,फेफड़े,पेट,आदि अंग प्रभावित होते हैं और शरीर अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाता है .हमारे अन्वेषण कह रहे हैं कि जो सांसारिक वस्तुओं के आनन्द में न पड़ कर आध्यात्मिक, धार्मिक, मानवीय मूल्यों के आनन्द में व सत्विक या उदार जीवन जीते हैं उन्हें दुख महसूस नहीं होते .सुख दुख तो मानव का नजरिया होता है.यदि हम ईर्ष्या से प्राप्त नगेटिव ऊर्जा को पाजटिव दिशा दे अपना आत्म साक्षात्कार कर स्पर्धा में अपने को रखो ईर्ष्या में नहीं.



कन्यापूजन व अर्द्धनारीश्वर शक्ति !



                     गुप्त काल से भारत में प्रत्येक वर्ष चैत्र व आश्विन मास में नवरात्र पर्व मनाया जा रहा है.शिव का अस्तित्व उसकी शक्ति पर ही आधारित है.'श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ ,नाथ नगरी,बरेली ,उप्र ' के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रताप सिंह'भैया जी' का कहना है -


" मूल तत्व से ही सब है और आखिर में उसी में ही समा जाता है.वह अद्वेत व निराकार है.लेकिन सृष्टि व प्रलय के लिए अकेला वह तत्व असफल है.ऐसे में अद्वेत का द्वेत मेँ आना आवश्यक है लेकिन द्वेत में ही फंसे रहने से मोक्ष सम्भव नहीं है . दुनिया की तमाम साधनाओं का उद्देश्य द्वेत से अद्वेत में छलांग लगाना है.द्वेत ही अद्वेत हुआ है,द्वेत को प्राप्त हुए बिना हम शान्ति व सन्तुष्टि नहीं पा सकते.हमारे द्वेत का अद्वेत रुप है.अर्द्धनारीश्वर रुप.हमारे सनातन विद्वान कह चुके हैं कि ब्राह्माण्ड की सारी शक्तियां हमारे अन्दर उपस्थित हैं लेकिन हम कस्तूरी मृग की तरह इधर उधर अपने मन व शरीर को लगाते हैं.आत्म साक्षात्कार के बिना हम अपनी यात्रा <चेतना अपनी यात्रा >तय नहीं कर सकते.अपने अर्द्धनारीश्वर स्वरुप को पहचाना बड़ा जरुरी है."




खुसरो मेल समाचार पत्र चार अप्रेल को लिखता है





" दिन को शिव(पुरुष) रूप में तथा रात्रि को शक्ति(प्रकृति )रुपा माना गया है.एक ही तत्व के दो स्वरुप हैं."


नवरात्र पर्व रात्रि प्रधान माना गया हैं.अन्धेरे या अज्ञान मेँ भी हमारा मन शिवमय बना रहे,जगत के लिए कल्याणकारी बना रहे व तामसी विकार युक्त शक्तियों को नष्ट करे,यही साधना रहे.इसका प्रशिक्षण होता है इन व्रतों के माध्यम से .लेकिन आज के साधकों व भक्तों को देख कर हमें अफसोस होता है.प्राचीन जिन व्यवस्था अर्थात अपनी इन्द्रियों को जीतने की व्यवस्था जब निर्गुण से सगुण हो गयी व चरित्र से चित्र पर आ गयी तो कृत्रिम व्यवस्थाओं व भौतिक भोगवाद की ओर अन्धाधुन्ध दौड़ में इंसान ने इंसान को अपनी आत्मा अर्थात अपने शिव से ही अपने को अलग कर दिया.वह कह तो देता है कि पुरूष व स्त्री एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं लेकिन यह सोंच अब सिर्फ शरीर तक रह गयी है व गुप्तकाल के बाद दोनों के बीच का पवित्र सम्बन्ध काम से कुण्ठित हमारे मन ने अपवित्र बना ही डाला .एक दूसरे प्रति दूरियां भी बना डालीं.आज स्थिति यह है कि दोनो एक साथ चल कर भी जीवन को मधुर नहीं बना पा रहे हैं .इसका एक मात्र कारण हमारा संकीर्ण नजरिया है.


02अप्रेल2011,दैनिक जागरण अपने संगिनी परिशिष्ट में पृष्ठ तीन पर ठीक ही लिखता है '' फिर नवरात्र के साथ कन्या पूजन की रस्म निभायी जायेगी और कुछ घंटों के लिये आस्था की यह नौटंकी हमारे जख्मों पर रुई का फाहा रख देगी.ठंडक मिलेगी उस रिसते हुए घाव को जो बच्चियों की दुर्दशा देखकर हमारे मन और जीवन में हुआ है.शर्मनाक है पुरुष का यह घिनौना चेहरा जिसके लिय महिला मात्र सेक्स डिवाइस है और हम फिर भी कहते हैं कि भारत में मातृशक्ति की उपासना करते हैं.
" अब हमारा मन किसी भी हालत में यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि नारीशक्ति मातृशक्ति होती है.क्यों न हम अपनी संस्कृति पर गर्व करते रहें लेकिन यह गर्व झूठा ही है.



हम वस्तव मे वह होते हैं जो हम नजरिया रखते हैं व अपनी जिन्दगी मे जो चाहते हैं.लिंगभेदी व करुणाहीन आध्यात्मिक होना तो दूर व देवि भक्त भी नहीं हो सकता.भक्त न तो कायर होता न ही दबंग.अपने निजी स्वार्थों के लिए मानव को व कष्ट नहीं पहुंचाता.वह सांसारिक इच्छाओं के प्रति तटस्थ होकर भगवत्ता में लीन होता है.अफसोस कि वह सांसारिक वस्तुओं की ही लीनता मन मे रखता है.प्रकृति में स्त्री पुरुष दोनो का सम अस्तित्व व सम भोग का अधिकार होता है.नारी शक्ति मातृशक्ति के सदृश्य होती है,ऐसे मे काम भाव सिर्फ सन्तान उत्पत्ति के लिए होता है. शिव तत्व अद्वेत रहने तक काम को मुर्छित रखते हैं ,द्वेत होने के बाद ही रति के लिए काम को जगाते न कि भोग के लिए.मैं निर्गुण अभी तक कोई भी धार्मिक व आध्यात्मिक नहीं पाये है.सभी पाखण्डी या साधक पाये है. भक्त भी नहीं,क्योकि दीवानी बिना भक्त भक्त नहीं.भक्त तो मीरा ,सूरदास,कबीर ,चैतन्य प्रभु,रसखान,आदि होते है ,जिसमेँ संसार प्रति दीवानगी नहीं वरन आत्म साक्षात्कार व सब जीवों प्रति समदृष्टि होती है.संसारियों में न कोई अपना होता है न पराया.अफसोस ब्राह्मण जाति का अपने को मान कर अहम मे रखने वाला भी ग्रन्थों के इस दर्शन के विरोध में खड़ा है.शायद इसी लिए तो यह कबीर ,रैदास,तुलसी,आदि की उपस्थिति में इनके विरोध में रहे हैं.यह हिन्दू समाज का एक बड़ा कलंक है कि इन ब्राहमणों के सामने ग्रन्थों की बात करो तो यह इधर उधर देखते नजर आते हैं या फिर इधर उधर की बातें करते हैं.न मानते है न ही जानते हैँ.