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Tuesday, April 5, 2011

......अब फर्ज निभाने का नहीं,सुना का?



                लगता है विभिन्न पदासीन व्यक्ति,कर्मचारी,नेता,आदि अपने अब निभाने का नहीं,सुना का?




                     यदि हमारा नजरिया ठीक हो तो फिल्मों से भी सीख ली जा सकती है. फिल्मोँ में दिखाया जाता है कि कैसे किस तरह ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर अपना फर्ज निभाते हुए अपने विभाग में ही अलग थलग पड़ जाता है?नेताशाही व अण्डरवर्ल्ड नाराज होता ही जाता है ,पब्लिक भी तमाशा देखती रह जाती है.उस पुलिस इंस्पेक्टर के साथ कौन खड़ा होता है?वह ,जो जुर्म की दुनिया का शिकार हुआ होता है .धर्म अनुष्ठानों में 'धर्म की विजय हो ' , 'अधर्म का नाश हो' ,आदि का जयघोष लगाने वाले,अपने को अपने ईमान पर पक्का बताने वाले वास्तव में कायर होते हैँ.बस,अपने निज स्वर्थों व अपने पक्ष के लिए अपनी कायरता ताख में रखते हैं या फिर वेवश कमजोर के सामने.धन्य,रोज मर्रे की जिन्दगी में उदार जीवन जीने वाले इनकी नजर में कायर होते है.अनेक विभागों में एक दो ईमानदार व्यक्तियों को अपने फर्ज निभाने वालों की मैने बगुला भगतों के बीच दशा दिशा देखी है,दुख होता है.

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