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Monday, April 25, 2011

26अप्रैल1920ई0:श्री निवास रामानुजन ( Srinivas Ramanujan ) पुण्य दिवस!



                                                वास्तव मेँ दो प्रतिशत लोगों के कारण ही मनुष्यता की लाज बची है.प्रतिभावानों के जीवन ढंग को उनके जीते जी स्वीकार नहीं किया गया.समाज में तो लकीर के फकीर हुए हैं.भक्ति के दो सहारे होते हैं-ज्ञान व वैराग्य.भक्ति को मैं दूसरा नाम देता हूँ -दीवानगी .



                                                 रामानुजन जब विश्वविद्यालयी शिक्षा प्राप्त न कर सकें.गणित में तो वे पूरे के पूरे नम्बर ले आते थे लेकिन अन्य विषय में वे फेल हो जाते थे.गणित के प्रति उनका लगाव दीवानगी स्तर पर था कि गणित के प्रति तो उनमें ज्ञान व अन्य के प्रति वैराग्य था.ऐसे में उन्हें अपने घर पर बैठना पड़ा.उनके माता पिता ही उन्हें पागल कहने लगे,उपेक्षित करने लगे व कमेंटस तथा नुक्ताचीनी करने लगे.रामानुजन हमेशा संख्याओं से खिलवाड़ करते रहते थे.13 साल की अवस्था में इन्होने लोनी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध ट्रिगनोमेट्री को हल कर डाला था.15 साल की अवस्था में George Shoobridge Carr द्वारा रचित एक पुस्तक Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics प्राप्त हुई.इस पुस्तक में छ हजार के लगभग प्रमेयों का संकलन था.जिसके आधार पर इन्होने कुछ नयी प्रमेय विकसित कीँ.
पिता के द्वारा जबरदस्ती विवाह के बाद जीविका यापन व अपने गणित सम्बन्धी कार्य को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी मुश्किल से पच्चीस रुपये माहवार की नौकरी मिल पायी.रुपयों के अभाव में इनकी स्थिति यहां तक पर पहुंच गयी थी कि वे सड़कों पर पड़े कागज उठाने लगे . कभी कभी तो वे अपना काम करने के लिए नीली स्याही से लिखे कागजों पर लाल कलम से लिखते थे.



                                                            इन्होने अपनी 120 प्रमेय को अच्छे कागजों पर लिखकर एक पत्र के साथ कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के विख्यात गणतिज्ञ जी एच हाडी (G.H.HARDY)को भेजी.हार्डी ने तुरन्त ही रामानुजन के कैम्ब्रिज आने के लिए प्रबन्ध कर डाले.इस प्रकार 17मार्च 1914 को रामानुजन ब्रिटेन के लिए जलयान से रवाना होगये थे.फिर सिलसिला शुरु हुआ उनके सम्मान व पुरस्कार का.



                                                             जीवन पर्यन्त उनमें गणित के प्रति दीवानगी बनी रही.आज इस अवसर पर मैं युवक युवतियों से कहना चाहूंगा कि अपनी प्रतिभा के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए.हालातों व सुलभ रास्ता को देख कर या अपने को मजबूर मान कर अपनी क्षमताओं से समझौता ठीक नहीं.आज भारतीय अनुसन्धानशालाओं में अच्छे शोधकर्मियों की कमी है ,इसका एक मात्र कारण युवाओं का नजरिया है.हमारा नजरिया ही हमे स्वतन्त्र या परतन्त्र बनाता है.

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