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Wednesday, September 15, 2010

14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Sun, 12 Sep 2010 20:03 IST
Subject: 14 सितम्बर: काले मैकाले सोँच मेँ हिन्दी

"HAPPY HINDI DAY ! भाड़ मेँ जाए हिन्दी . यह दिवस तो हैँ बस , योँ ही जीवन मेँ कुछ चेँजिँग के लिए.अरे ,एडवाँस दिखने के लिए अंग्रेजी के सन्टेनस या वर्ड न बोलो तो काम नहीँ चलता .हिन्दीबासियोँ मेँ अपना रोब जमाने के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल अच्छा है."

ऐसा कहने वाली देशी अंग्रेजी नस्लें मैकाले की औलादेँ है.


" हैलो ब्रादर,हमेँ मैकाले की औलादेँ क्योँ बताते हो?राजा राम मोहन राय,ट्रेवेलियन ,आदि की औलादे क्योँ नहीँ कहते? इनकी बहुलता नहीँ होती तो मैकाले भी क्या करता. घर की भाषा मूली बराबर . " सन
1835 ई0 मेँ काले मैकालोँ के माध्यम से आधार पाकर गोरा मैकाले ने सफलता पायी.अकेला मैकाले तो दिमाग चलाता है,चेक भुनाता है कालोँ के लीडरोँ की मानसिकता का.कालोँ का दिमाग चलने की एक हद है.वह हद कहाँ तक जा सकती है?मैकालोँ के पक्ष के अपोजिट लोगोँ की गुलामी तक,राज ठाकरो की गुलामी तक.या राज ठाकरोँ के अपोजिटोँ की गुलामी तक.हमेँ जिनके पक्ष मेँ भड़कना चाहिए ,नहीँ भड़कते.भड़कना तो हमेँ दबंगोँ
,जातीवादियो,क्षेत्रवादियोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर चाहिए.कानूनविदोँ,समाजसेवियो,विद्वानोँ,आदि के पक्ष मेँ जा कर भड़कने से क्या फायदा ? बस,सेमीनारोँ तक.......


हम भी कहाँ की लेकर बैठ गये?

खैर....

भारत स्वाधीन हुआ,सत्तावादियोँ का सपना साकार हुआ.स्वतन्त्रतासेनानियोँ सपने...?!उन सपनोँ की छोड़ो,हमारे पुरखे स ल्तन काल मेँ भी मौज मेँ थे,मुगलकाल मेँ भी,ब्रिटिश काल मेँ भी और अब आजादी के बाद भी....?!सत्ता का समर्थन करने ,पूँजी का समर्थन करने का मजा ही कुछ और है,दबंगता का समर्थन करने का मजा ही कुछ ओर है?! मैँ भी अभी तक हिन्दी की चर्चा पर नहीँ पहुँच पाया.
भारत स्वाधीन हुआ और 14 सितम्बर 1949ई0 देवनागरी लिपि मेँ लिखित हिन्दी को राष्ट्र भाषा का पद प्रदान कर दिया गया.हालांकि विश्व स्तर पर तक हिन्दी अच्छी हो रही है.विश्व मेँ लगभग 01 अरब लोग हिन्दी को समझ व बोल सकते हैँ लेकिन काले मैकालोँ का क्या कहना ?इन काले मैकालो की नजर मेँ हिन्दी अब भी गंवारोँ की भाषा है.

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