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Sent: Sun, 12 Sep 2010 00:32 IST
Subject: मुसलमान भाईयोँ:जनहित के पोषक हजरत अली
दुनिया के तमाम धर्मोँ को मेँ धर्म नहीँ मानता, मैँ उन्हेँ धर्म पर जाने का पथ मानता हूँ.असगर अली इंजीनियर के अनुसार-
" हजरत अली का कहना था कि यह दुनिया महज एक ठीकाना भर है,जहां मुसलमानोँ को कुरआन की शिक्षा के मुताबिक अपना रहन सहन रखना चाहिए."
मैँ वर्तमान हिन्दुओँ तो गैरहिन्दुओँ के व्यवहार व सोँच से खुश नहीँ हूँ. मेरी अपनी धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ धर्मस्थलोँ,जाति,एक विशेष ग्रन्थ,आदि का महत्व नहीँ है.हाँ,इतना मेँ जरूर मानता हूँ कि आदि काल से लेकर और आगे तक धर्म ,अध्यात्म की यात्रा जारी रहने वाली है.वह भी एक दो प्रतिशत व्यक्तियोँ के द्वारा है,शेष तो ढ़ोँग आडम्बर या अवसरवादिता का शिकार हो भीड़ का हिस्सा बन कर
रह जाते हैँ.मेरे लिए तो सनातन यात्रा का एक हिस्सा है-इस धरती पर ऋषियोँ नवियोँ का आना, ऋग्वेद अवेस्ता का आना, गीता ,बाइबिल,कुरआन, सत्यार्थप्रकाश ,आदि का आना .,कणाद,अष्टाव्रक, चाणक्य, प्लेटो,अरस्तु,सुकरात, ओशो,आदि के साथ साथ अनेक अवतारोँ पैगम्बरोँ,दर्शनिको, आदि का आना. हम 'मत' मेँ तो जिएं लेकिन 'मतभेद' मेँ नहीँ.सद्भावना का आचरण सीखे बिना हम धर्म की ओर कैसे बढ़ सकते है ? काफिर कौन
है?क्या कोई मुसलमान काफिर नहीँ हो सकता? क्या सभी गैरमुसलमान काफिर ही हैँ ? आर्य दर्शन के बाद मुझे कोई दर्शन अपनी और आकर्षित करता है तो वह है मुस्लिम दर्शन.आर्य दर्शन का ही अगला चरण क्रमश: मैँ यहुदी ,पारसी,जैन ,बौद्ध ,ईसाई,मुस्लिम दर्शन को मानता हूँ. लेकिन वर्तमान हिन्दुओँ व गैरहिन्दुओँ मेरे इस विचार को शायद ही आप माने ?चलो कोई बात नहीँ,यही तो न कि अपनी ढपली अपना राग.
खैर.....
शुक्रवार,10सितम्बर2010 ई0 !
राष्ट्रीय सहारा के पृष्ठ 10 पर असगर अली इंजीनियर का एक लेख प्रकाशित हुआ था-'जनहित के पोषक हजरत अली'.
एक सराहनीय लेख था.कुछ दिन पूर्व एक अन्य मुस्लिम विचारक का लेख प्रकाशित हुआ था,जिसके अनुसार -'सत्य को छिपाने वाले को काफिर ' बताया गया था.
मुस्लिम भाईयोँ को भी अपने पैगम्बरोँ व कुरआन
के दर्शन की तटस्थ व्याख्या करने वाले ,कम से कम मुस्लिम विचारकोँ को तो पढ़ना ही चाहिए.
वहीँ दूसरी ओर इसी दिन दैनिक जागरण के पृष्ठ 10 पर हृदय नारायण दीक्षित का लेख-' राष्ट्रीय आकांक्षा का सवाल' प्रकाशित हुआ.जिसमेँ एक स्थान पर लिखा था-
" डा बी आर अंबडकर ने' पाकिस्तान आर पार्टीशन आफ इंडिया' मेँ लिखा,मुस्लिम हमलोँ का लक्ष्य लूट या विजय ही नहीँ था, नि : संदेह इनका उद्देश्य मूर्ति पूजा और बहुदेववाद को मिटाकर भारत मेँ इस्लाम की स्थापना भी था' . ....... बाबरी मस्जिद निर्माण पर ढेर सारी टिप्पणियां है .पी कार्नेगी भी ' हिस्टारिकल स्केच आफ फैजाबाद' मेँ मन्दिर की सामग्री से बाबर द्वारा मस्जिद निर्माण का वर्णन करते
हैँ.गजेटियर आफ दि प्राविँस आफ अवध मेँ भी यही बातेँ हैँ. फैजाबाद सेटलमेँट रिपोर्ट भी इन्हीँ तथ्योँ को सही ठहराती है.इंपीरियल गजेटियर आफ फैजाबाद भी मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण के तथ्य बताता है. बाराबंकी डिस्ट्रिकट गजेटियर मेँ जन्मस्थान मन्दिर को गिरा कर मस्जिद बनाने का वर्णन है. मुस्लिम विद्वानो ने भी काफी कुछ लिखा है................,...श्रीराम जन्मभूमि का मसला गहन राष्ट्रभाव का
प्रतीक है.इसलिए उभयपक्षी संवाद अपरिहार्य है. आपसी बातचीत से निर्णय करेँ कि यहां क्या बनना चाहिए? "
धर्मस्थलोँ के लिए लड़ना क्या धर्म है?यदि हाँ,तो मैँ ऐसे धर्म का सम्मान नहीँ कर सकता .धर्म का सम्बन्ध निर्जीव वस्तुओँ के सम्मान या अपमान से नहीँ हो सकता ?
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