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Wednesday, September 22, 2010

24सितम्बर2010ई0:ऐ मुसलमानोँ सुनोँ!

----Forwarded Message----
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Thu, 23 Sep 2010 04:24 IST
Subject: 24सितम्बर2010ई0:ऐ मुसलमानोँ सुनोँ!

एतिहासिक आसिफी मस्जिद के इमाम ए जुमा और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि इस्लाम के मुताबिक नमाज केवल अपनी जमीन ( खरीदी या फिर दान की गयी जमीन हो) पर ही पढ़ना जायज है.हमारी जमीन नहीँ है तो वापस करना होगा.आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा कि कुरान मेँ साफ कहा गया है कि इन्सान की हत्या
करना इंसानियत की हत्या करना है और इंसान की जान बचाना इंसानियत को बचाना है.

21 सितम्बर को नई दिल्ली मेँ इत्तेहाद ए मिल्लत कन्वेँशन और संत समाज की साझा प्रेस वार्ता मेँ सभी पन्थोँ के गुरुओँ ने शान्ति व सौहार्द की बात की.

ऐ मुसलमानोँ ! मैँ जितना मुस्लिम दर्शन का हिमायती हूँ उतना वर्तमान हिन्दुओँ की वर्तमान सोँचात्मक दर्शन का नहीँ.जब मैँ कहता हूँ कि मेरा आदिग्रन्थ है-ऋग्वेद! तो मेरी वर्तमान हिन्दू समाज के प्रति सकारात्मक सोँच नहीँ होती और अपने को हिन्दू नहीँ वरन आर्य समझ कर गौरवान्वित होता हूँ . धर्म का सम्बन्ध मैँ चरित्र ,नैतिकता,आचरण, उदार प्रवृत्ति,पर हित,सेवा भाव,मिलनसार
प्रवृत्ति , आदि से जोड़ता हूँ न कि धर्म स्थलोँ,रीति रिवाजोँ, पूजा पद्धतियोँ,मतभेदोँ, द्वेश भावना,आदि से.प्रकृति के सम्मान के बिना हमारी धार्मिकता ढोँग व पाखण्ड है.इन्सान प्रकृति की श्रेष्ठ कृति है,उसे कष्ट पहुँचा कर क्या धर्म विकसित होता है ?
हम सब जिसे धर्म कहते ,वह धर्म नहीँ वरन पन्थ हैँ.चाहेँ हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य धर्म सब इंसान का एक ही होता है.


हमेँ अपने विवेक ,बुद्धि व हृदय के दरबाजे हमेशा खुले रखना चाहिए.हमेँ यह भी अनुशीलन रखना चाहिए कि चाहेँ विश्व मेँ कोई भी जाति हो ,सबके पूर्वज एक ही थे.विज्ञान भी इसे स्वीकृति देता है. धनाढ्य व सुशिक्षित मुस्लिम वर्ग भी इस बात को समझता है. विश्व की तमाम जातियोँ के डी एन ए परीक्षण भी यही बताते हैँ कि विश्व की सभी जातियोँ का सम्बन्ध भारतीय महाद्वीप की आदि जातियोँ से रहा
होगा.अब शोध इस बात को भी स्वीकार कर रहे है कि आदि मानव की परिस्थितियाँ ब्रह्म देश(कश्मीर, तिब्बत, मानसरोवर, हिन्दुकुश ,आदि) मेँ उपस्थित थीँ.ढाई हजार वर्ष पूर्व सम्भवत: आपस मेँ वैवाहिक सम्बन्ध भी बिना रोक टोक के थे.


सभ्यता,संस्कृति व दर्शन के विकास व हमारे पूर्वजोँ मेँ आयी कमियोँ के परिणामस्वरूप विश्व मेँ विभिन्न पन्थ सामने आये.जिसे मैँ सनातन धर्म की विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ यात्रा व सनातन धर्म को बचाने का परिणाम मानता हूँ.
आदि ऋषियोँ नबियोँ से लेकर अष्टावक्र कणाद आदि,हजरत इब्राहिम इस्माइल आदि ,सभ्यताओँ की धार्मिक स्थिति व घटक,जैन बुद्ध,अरस्तु कन्फ्यूशियस आदि,ईसा व हजरत मोहम्मद साहब आदि,कबीर,नानक,ओशो,आदि सनातन धर्म यात्रा का एक हिस्सा हैँ जो कि हमेशा जारी रहनी है.
इस यात्रा की मंजिल अनन्त व शाश्वत है.मनुष्य भी इस यात्रा का मात्र एक पड़ाव है.

बहुलवाद हमारे विश्व की एक शोभा है.जिसमेँ सामञ्जस्य व सौहार्द बनाये रखने
की असफलता हमारी कमजोरी है,हमारी इंसानियत की कमजोर जड़ की पहचान है.इस कमजोरी को दूर करने के लिए अभी अनन्त यात्रा तक महापुरुषोँ की आवश्यकता है.कम से कम तब तक जब तक मानव महामानव होने पड़ाव तक नहीँ पहुँच जाता.अरविन्द घोष का तो यहाँ तक कहना है कि यात्रा महामानव होने बाद भी जारी रहेगी.अभी तो मनुष्य मनुष्य ही ईमानदारी से नहीँ बन पाया है, उस पर आदिम प्रवृत्तियाँ अभी हाबी हैँ और अभी
उसकी सोँच एन्द्रिक व शारीरिक आवश्यकताओँ से ऊपर नहीँ उठ पायी है.


ऐसे दार्शनिक राजाओँ की आवश्यकता है जिसके निर्देश पर उनके सेनापति व कर्मचारी साम दाम दण्ड भेद से विश्व मेँ कुप्रबन्धन भ्रष्टाचार व अन्याय के खिलाफ वातावरण बनाए रखेँ.


शेष फिर....


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