आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (स्मार्त) कल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (वैष्णव) है। हिन्दू(पौराणिक) पर्व मनाने में लगे हैं। हम एक हद तक इसके विरोधी नहीं हैं।
हम अपने महापुरुषों को कैसे याद करें? अब श्रीकृष्ण को ही लेते हैं।
हम किशोरावस्था से ही मन्दिर में जाते ही पहली बार ही मूर्तियों तश्वीरों के सामने सिर झुकाते कुछ खास अनुभव करने लगे,क्योकि चिंतन मनन हमारे जीवन का हिस्सा हो चुका था। हम मन्दिरों, प्रकृति के बीच जा कर आंख बंद कर बैठने लगें। ग्रन्थों, महापुरुषों की वाणियों पर मनन करने लगे।
श्री कृष्ण जीवन भर मुस्कुराते रहे।यहां तक कि किसी के लाशों पर रोने पर भी।वे कब रोए?
सुदामा को देख।
शंकर से मिलने के लिए।जब वे छोटे थे।शंकर जी मिलने आये।
कब रोना चाहिए?
किसी की दीन हीन दशा पर।
महापुरुष से मिलने के लिए।
महापुरुष कौन है?
जो पुरुष(आत्मा) महान पुरुष की यात्रा पर है। परम् आत्मा की ओर हौ।
इसका मतलब क्या हुआ?
सब खामोश।
होना महत्वपूर्ण है। रीति रिवाज, कर्मकांड का सम्बंध जरूरी नहीं कि यात्रा की ओर हो,चेतना व समझ को आगे(age)की ओर लेजाने का हो,विस्तार का हो।
अर्थात सागर में कुम्भ, कुम्भ में सागर!
मालिक जैसा होना।
आत्मा अंदर है,इसका मतलब परम् आत्मा की संभावनाएं भी अंदर हैं।
हम सभी सपरिवार योगा के समय चर्चा कर रहे थे।हम सबसे सवाल कर रहे थे।
इसके बाद उनके जवाबों को हम संवार रहे थे।
हम मन ही मन खुश हो रहे थे कि कुछ सवालों के जवाब दोनों बेटियां दे रहीं थीं।
जैसे-
श्रुतिकीर्त- वे सुदामा को देख रोए।
सिद्धिकीर्ति- छोटे पर शंकर जी से मिलने के लिए।
हमें ध्यान आगया, जब श्रुति कीर्ति ठीक से बोलना भी नहीं आया था, वह अचानक बोली थी-"जीवन कविता है।"
कविता क्या है?गीता क्या है?मुरली क्या है? इसे अनन्त यात्रा की कल्पना, चिंतन मनन से ही आभास किया जा सकता है।
श्री श्री रविशंकर की इस बात को भी हमने पेश किया-
"जो अजन्मा है।उसका । दिन मनाने का मतलब क्या है?ज्ञान, प्रेम व शरारत की मिलीभगत।"
हमें कब रोना चाहिए?
लोगों की दीन दशा पर व महापुरुष से मिलने के लिए।
अर्थात मानवता व अध्यात्म के लिए।
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