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Saturday, August 15, 2020

आत्माओं का तन्त्र -स्वतन्त्र: अशोकबिन्दु


भारत का कोई जंगली इलाका।

उसे जंगल में भटकते दो साल हो गए थे लेकिन उसे उसकी गरिमा न मिली थी।

गरिमा कौन?

गरिमा उसके साथ कक्षा 01 से 12 तक साथ पड़ी थी।

उसके पिता उसके नगर के ही एक प्राइवेट कालेज में पढ़ाते थे।

बड़ी मुश्किल से उसका जीवन चलता था वह अपने माता पिता की इकलौती बेटी थी। स्वाभाविक है कि उसे काफी लाड़ प्यार से रखा जाता था।  


30 अगस्त 2020 की बात कोरोना संक्रमण के दौरान उसके माता पिता चल बसे।

वह अब अकेली।

उसके माता पिता का ख्वाब था कि वह आई ए एस आफिसर बने।


जीवन बड़ा मुश्किल हो गया था। उसके माता पिता अच्छे माहौल पाने के कारण आर्थिक समस्याओं के बाबजूद शहर में रह रहे थे। कोरोना संक्रमण में उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक खराब हो गयी थी। गांव में तीन बीघा जमीन थी।जिस पर पिता जी के पिता के चचेरे भाई के दबंग लड़के का कब्जा था। गरिमा के दादा दादी पहले ही खत्म हो गये थे।


मुसीबत पर मुसीबत। अब पचास प्रतिशत से भी ज्यादा मुसीबत स्त्री जाति का होना। ऐसे में क्या हिन्दू क्या मुसलमान?क्या सहयोगी क्या असहयोगी? कुत्तों की तरह जून की दोपहरी में हांफते, जीभ बाहर निकले। कामाग्नि की आग से पीड़ित ..... गांव ददीयूरी शासन के सहयोग से जमीन अपने नाम करवाने की कोशिस। शासन प्रशासन सब के सब भ्रष्ट। सोशल मीडिया, आन लाइन कार्यवाहियों के कारण प्रशासन कुछ कुछ दिखावा जरूर ठीक कर रहा था। कुछ समाजिक संस्थाओं के सहयोग से वह संघर्ष तो कर रही थी। 

बिना धन अब कैसे संघर्ष, कोर्ट कचहरी।ऊपर से कोरोना संक्रमण।ऐसे में कोरोना भय ने कामाग्नि में लार टपकते छोटे बड़े, बुड्ढे पुरूष दूर रह जाते।जानबूझ कर वह खांसने आदि का,गला खंगारने का नाटक करती रहती। कुछ जेवर आदि बेंच कर काम चलाया।गांव से साल में 20-25 हजार रुपयों से कितना काम चलता।वह माता पिता के रहते ही खर्च हो गया और ऊपर से कर्जा।


ऐसा क्या हुआ कि वह जंगल में आ गयी? लेकिन कहाँ? मैं उससे क्यों न मिला।उसकी मदद करने को मैं तैयार था।मेरा बी एस सी फाइनल इस साल।बनारस में ही रहकर किराये पर कमरा लेकर रह रहा था।


अब वह सोंच रहा था, काश समय रहते गरिमा से मिल लेता।

अब ऐसे कैसे उससे मुलाकात। वह कहीं नक्सली न हो जाए?फूलनदेवी की तरह डाकू फूलन देवी न बन जाए।मजबूरी का नाम महात्मा गांधी नहीं। उसके माता पिता का तो ख़्वाब था-आई ए एस अधिकारी के रूप में गरिमा को देखना लेकिन..?

हतास निराश हो वह युवक वापस बनारस आ गया । उसे भी बी एस सी फाइनल की परीक्षा दे आई ए एस की परीक्षा में बैठना था।उसके पिता भी क्या कोई करोड़ पति अरबपति की औलाद थे?


एक दिन उसके कमरे पर कुछ असन्दिग्ध लोग आ पहुंचे।

आप लोग कौन?

तू जंगल में क्या कर रहा था? हम लोग नक्सली हैं।हम लोग समझ रहे थे कि तू सरकार के लिए जासूसी तो नहीं करता कहीं?इन्क्वारी में आ पहुंचे।


वही जंगल में पकड़ कर हमें दबोच लेते।

फिर युवक ने सारी बात बता दी।

ओह, गरिमा से प्यार करते हो? खुल कर कुछ न करो।सोशल मीडिया हैं न।कहीं उसकी नजर आपके मैसेजेस पर पड़ जाए?ओके

हम लोग यहाँ आये थे, जिक्र न करना।वैसे भी आपको क्या लेना देना?मेहनत करो,पढाई करो।हम चलते हैं।

उसने सोशल मीडिया पर सभी जगह उसके बारे में लिखा था।लगभग छह महीने बाद उसे फेसबुक मैसेंजर पर एक मैसेज मिला-स्वतन्त्र, तुम निश्चिंत रहो। मैं ठीक हूँ।मै फूलन देवी बनने नहीं जा रही हूं। माता पिता के निगाहों से गिरना नहीं चाहती। भूल गए तुम।एक बार15 अगस्त को माइक पर आपने क्या कहा था?आत्माओं का तन्त्र या अभियान ही स्वतन्त्रता है।उस पर विश्वास करो। सर जी ठीक कहते हैं, उसके मिला पत्ता नहीं हिलता-ये कहते फिरने से काम नहीं चलता।आचरण व अनुभव महत्वपूर्ण हैं।भूल गए क्या?

समय गुजरा।

अब सन 2030-31ई0!

उसे खुशी का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि गरिमा आई ए एस आफिसर बन गयी है।

मीडिया में उसका साक्षात्कार था, इसके लिए श्रेय पहले माता पिता, फिर मेरे सर जी,इसके बाद मेरे मित्र स्वतन्त्र को जाता है।


स्वतन्त्र खुशी में झूम उठा लेकिन... लेकिन ....फिर...?! फिर उसके आंखों में आंसू आ गए।


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