From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Mon, 06 Dec 2010 20:39 IST
Subject: 11दिसम्बर:ओशो जन्मदिवस
दुनिया किसको याद रखती है ? निन्यानवे प्रतिशत से भी ज्यादा लोग दुनिया रुपी गुड़ मेँ चिपक कर रह जाते हैँ.कुछ दुनिया मेँ आते हैँ और दुनिया की चिपक से हट अपनी एक अलग पहचान बना कर चले जाते हैँ.दुनिया मेँ मेरी दृष्टि से दो ही जातियाँ है-आर्य व अनार्य.आचरण व व्यवहार से 99प्रतिशत से ऊपर लोग अनार्य ही हैँ.हजरत इब्राहिम इस्माईल ,ईसा,आदि को भी मैँ आर्य पथ का ही राही मानता हूँ.
अभी एक दशक पूर्व इस धरती पर अतिथि रहे -ओशो.जब तक वे इस धरती पर रहे तब तक उन्हेँ जानने की कोशिस नहीँ की गयी.वे एक श्रेष्ठ व्याख्याकार थे. मैँ जब इण्टर क्लास का छात्र था तभी से मैँ ओशो के साहित्य से सम्पर्क मेँ हूँ.मुझे तो तब यही लगा था कि वे मेरे अन्दर जो चल रहा है उसके ही व्याख्याकार हैँ.उस वक्त लोग इनके नाम से कितना चिड़ते थे मुझे भली भाँति पता है.इनके साहित्य तक से लोगोँ को
नफरत थी.मैने महसूस किया था कि कुछ लोग धर्म चर्चा मेँ अन्जाने मेँ ओशो की बातोँ से मिलती जुलती बातेँ ही करते हैँ लेकिन ओशो से चिड़ते हैँ.ऐसे ही कुछ लोगोँ के साथ मैने एक प्रयोग किया ,अब भी ऐसा प्रयोग करता हूँ कि ओशो की पुस्तकोँ को मैँ ऊपर के कवर व अन्दर के एक दो पृष्ठोँ को हटा कर पढ़ने को देता रहा . यह पुस्तकेँ पढ़ने के बाद वे इन पुस्तकोँ से प्रभावित थे.जब उन्हेँ पता चला कि यह तो ओशो
की पुस्तके थी, जिन की आप अभी तक आलोचना करते रहे थे.अब वे ओशो साहित्य के प्रशन्सक है.ऐसे प्रयोग के परिणाम से क्या सिद्ध होता है.शिक्षित व्यक्ति भी तक अभी भेड़ की चाल मेँ है और परख व अन्वेषण से दूर है.
ओशो ने स्वयं कहा था जब मैँ धरती पर नहीँ होँऊगा तब लोग मुझे याद करेँगे ,तब मेरी निशानियाँ परम्परा मेँ शामिल हो जाएंगी और तब मेरे साथ जो हो रहा है वह किसी नये के साथ होगा.यहाँ तो सब लाश की चीटियां हैँ.अब मैँ देख रहा हूँ कि जो कभी ओशो के विरोध मेँ खड़े थे वे आज ओशो के प्रशन्सक हैँ.हाँ,मैँ कह रहा था कि दुनिया मेँ दो ही जाति हैँ-आर्य,अनार्यँ.ऐसे मेँ जो जन्मजात के समर्थन मेँ खड़े हैँ
वे अज्ञानी है.इस अवसर पर मैँ विहिप,बजरंग दल,आर एस एस ,आदि के स्थानीय व्यवहारों से असन्तुष्टि दर्ज कराता हूँ.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'
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