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Friday, August 10, 2018

वैदिकता के परिपेक्ष्य में हिन्दू??

वैदिकता के परिपेक्ष्य में वर्तमान हिन्दू??
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आर्य समाज, ब्रह्म समाज आदि यदि वेद के आधार पर स्थापित हुए है  तो क्या हिन्दू आदि वेद के खिलाफ हैं?हिन्दू की वर्तमान सोंच, कर्मकांड, अंधविश्वास आदि वैदिकता के खिलाफ है ? जो वह इन संस्थाओं की आलोचना करते फिरते हैं??किसी ने कहा है वेद सनातन व हमारी सोच,कर्मकांड, अंधविश्वास आदि के बीच का वह बिंदु है,जिस पर पहुंचे बिना हम सनातन/अनन्त/आत्मा के गुणों/स्वधर्म/अपने व जगत मूल/आदि की ओर यात्रा में सहभागी नहीं हो सकते???सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!!



  हम जयश्रीराम क्यों कहें?क्या राम से पहले सनातन नहीं था? हम श्री कृष्णा क्यों कहें?क्या श्री कृष्ण से पहले सनातन नहीं था?हम राधे राधे क्यों कहें?क्या राधा से पहले सनातन नहीं था??आदि आदि...जो भी दिख रहा है,वह सब प्रकृति है.हम भी प्रकृति का अंग हैं.जो त्रिगुणी है.वह जो है सर्व व्याप्त है.उसको लेकर कृत्रिमताओं, बनाबटों, आदि की क्या जरूरत?अपने अंतर प्रकाश को पकड़ो.मार्टिन लूथर हमें हर वक्त स्मरण में रहते हैं,जिन्होंने कहा था हम अब शिक्षित हो चुके हैं, हम क्यों किसी की माने?हम सिर्फ गर्न्थो व भगवान की ही मान सकते है.शिक्षित होने का मतलब क्या है?ज्ञान व प्रेम या बुद्धि व हृदय के आधार पर चलना स्वतन्त्र होकर. भक्ति/दीवानगी के दो ही आधार हैं-ज्ञान व वैराग्य(दुनिया की नजर में न जी महापुरुषों की वाणियों के आधार पर जीना)..!!
#कबिरापुण्य

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