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Tuesday, December 14, 2010
THE PATH OF WORLD-PEACE.
Monday, December 13, 2010
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Mon, 13 Dec 2010 06:27 IST
Subject: गुरु ग्रन्थोत्सव :आओ सिक्ख बनेँ
सिक्ख यानि कि शिष्य परम्परा मेँ जीना हर व्यक्ति को आवश्यक है अर्थात हर व्यक्ति को निरन्तर प्रशिक्षण मेँ रहना आवश्यक है.स्वाध्याय , सत्संग ,विचार गोष्ठी,सेमीनार,आदि आवश्यक है.हम भगत सिँह की इस प्रसंग से सीख नहीँ ले सकते कि उन्हेँ जिस दिन फांसी पर चढ़ाया जाने वाला था उस दिन भी वे पुस्तकोँ का अध्ययन कर रहे थे.
मन को ऋणात्मक सोँच व विभिन्न विक्रतियोँ से बचाने के लिए निरन्तर स्वाध्याय व सत्संग आवश्यक है.
खैर......
मध्यकालीन परिस्थितियोँ से हमेँ गुरु गोविन्द सिँह जैसा व्यक्तित्व प्राप्त हुआ . मिशन किस के पक्ष मेँ है या विपक्ष मेँ है,यह अलग बात है.हमेँ मिशन के प्रति कैसा होना चाहिए इस की सीख हमेँ गुरु गोविन्द सिँह से मिलती है.
जिन्ना ने कहा था कि जिस दिन प्रथम हिन्दुस्तानी मुसलमान बना था उस दिन पाकिस्तान की नीँव पड़ चुकी थी.सिक्ख पन्थ की स्थापना कोई गैरभारतीयता का उदय न थी बल्कि इन हजार वर्षोँ मेँ प्रथम बार किसी ने भारतीय राष्ट्रीयता को समग्र शक्ति देने का कार्य किया था.धर्मान्तरण मेँ लगी ईसाई मिशनरियोँ के देश मेँ ही धर्मान्तरण को करारा जबाव देने वाले ओशो का नाम छोँड़ देँ तो हम कह सकते हैँ
कि मजबूरन धर्मान्तरण के विरोध मेँ इन तीन हजार वर्षों मेँ कोई सच्चे मायने मेँ खड़ा हुआ था , वह था सिक्ख समाज.
हर कोई सिक्ख हो,मतलब सिक्ख पन्थ को स्वीकार करने से नहीँ है सिर्फ.निरन्तर साधना व प्रशिक्षण मेँ लगे रहते हुए बहुयामी जीवन को जीना है.
जरा अनुभव तो कीजिए , गुरु अपने अन्दर भी बैठा है जिस पर पकड़ बनाए बिना स्थूल सांसारिक मत मतान्तरोँ मेँ उलझे रहने से कोई कल्याण नहीँ होने वाला.गुरु प्रथा को समाप्त करना और गुरुस्थान पर 'गुरुग्रन्थ साहिब' को विराजमान करना भारतीयता के जीवन मेँ महत्वपूर्ण कदम है.इसे गहराई से सोँचना होगा.
गुरुग्रन्थ साहिब मेँ कबीर रैदास मीरा आदि सन्तोँ को स्थान दिया गया .मेरा विचार है कि इस तरह विश्व स्तर पर भी एक ग्रन्थ का निर्माण होना चाहिए जिसमेँ विश्व के सभी मतोँ की समान बातेँ शामिल की जाएं.
Wednesday, December 8, 2010
जेहाद:गीता जयन्ती व मोहर्रम
भाँति है.जो माया मोह मेँ अपना धर्म भूल जाता है.उसे कृष्ण रुपी जाग्रत आत्मा की पकड़ चाहिए.जेहाद अर्थात धर्म युद्व के पथ पर कोई अपना नहीँ होता.आदि काल से लेकर अब तक प्रत्येक सम्प्रदाय मेँ किसी न किसी रुप मेँ धर्म की मशाल ले कर चलने वाले रहे हैँ और आते रहेँगे.जिनके जीवन मेँ चाहे घटनात्मक दृष्टि से असमानता हो लेकिन दर्शनात्मक तथ्य हमेँ तो समान लगते हैँ.
Monday, December 6, 2010
11दिसम्बर:ओशो जन्मदिवस
From: akvashokbindu@yahoo.in
To: akvashokbindu@yahoo.in
Sent: Mon, 06 Dec 2010 20:39 IST
Subject: 11दिसम्बर:ओशो जन्मदिवस
दुनिया किसको याद रखती है ? निन्यानवे प्रतिशत से भी ज्यादा लोग दुनिया रुपी गुड़ मेँ चिपक कर रह जाते हैँ.कुछ दुनिया मेँ आते हैँ और दुनिया की चिपक से हट अपनी एक अलग पहचान बना कर चले जाते हैँ.दुनिया मेँ मेरी दृष्टि से दो ही जातियाँ है-आर्य व अनार्य.आचरण व व्यवहार से 99प्रतिशत से ऊपर लोग अनार्य ही हैँ.हजरत इब्राहिम इस्माईल ,ईसा,आदि को भी मैँ आर्य पथ का ही राही मानता हूँ.
अभी एक दशक पूर्व इस धरती पर अतिथि रहे -ओशो.जब तक वे इस धरती पर रहे तब तक उन्हेँ जानने की कोशिस नहीँ की गयी.वे एक श्रेष्ठ व्याख्याकार थे. मैँ जब इण्टर क्लास का छात्र था तभी से मैँ ओशो के साहित्य से सम्पर्क मेँ हूँ.मुझे तो तब यही लगा था कि वे मेरे अन्दर जो चल रहा है उसके ही व्याख्याकार हैँ.उस वक्त लोग इनके नाम से कितना चिड़ते थे मुझे भली भाँति पता है.इनके साहित्य तक से लोगोँ को
नफरत थी.मैने महसूस किया था कि कुछ लोग धर्म चर्चा मेँ अन्जाने मेँ ओशो की बातोँ से मिलती जुलती बातेँ ही करते हैँ लेकिन ओशो से चिड़ते हैँ.ऐसे ही कुछ लोगोँ के साथ मैने एक प्रयोग किया ,अब भी ऐसा प्रयोग करता हूँ कि ओशो की पुस्तकोँ को मैँ ऊपर के कवर व अन्दर के एक दो पृष्ठोँ को हटा कर पढ़ने को देता रहा . यह पुस्तकेँ पढ़ने के बाद वे इन पुस्तकोँ से प्रभावित थे.जब उन्हेँ पता चला कि यह तो ओशो
की पुस्तके थी, जिन की आप अभी तक आलोचना करते रहे थे.अब वे ओशो साहित्य के प्रशन्सक है.ऐसे प्रयोग के परिणाम से क्या सिद्ध होता है.शिक्षित व्यक्ति भी तक अभी भेड़ की चाल मेँ है और परख व अन्वेषण से दूर है.
ओशो ने स्वयं कहा था जब मैँ धरती पर नहीँ होँऊगा तब लोग मुझे याद करेँगे ,तब मेरी निशानियाँ परम्परा मेँ शामिल हो जाएंगी और तब मेरे साथ जो हो रहा है वह किसी नये के साथ होगा.यहाँ तो सब लाश की चीटियां हैँ.अब मैँ देख रहा हूँ कि जो कभी ओशो के विरोध मेँ खड़े थे वे आज ओशो के प्रशन्सक हैँ.हाँ,मैँ कह रहा था कि दुनिया मेँ दो ही जाति हैँ-आर्य,अनार्यँ.ऐसे मेँ जो जन्मजात के समर्थन मेँ खड़े हैँ
वे अज्ञानी है.इस अवसर पर मैँ विहिप,बजरंग दल,आर एस एस ,आदि के स्थानीय व्यवहारों से असन्तुष्टि दर्ज कराता हूँ.
ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'