वे आंसू कह रहे थे
कौन है सुरक्षित इस देश मेँ?
आज फिर आंसू अन्ना का सैलाब देख कर
बचपन से सहते खामोशी चुपचाप
आज निकले आंसू बन कर..
सज रहे हैं प्रजातन्त्र के मेले,
जहां अरमान रावण को नहीं रावणत्व को मारने के.
सत्ता परिवर्तन के नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के मेले
----------
मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया
No comments:
Post a Comment